भुजंगासन की विधि और सावधानियां
भुजंगासन, जैसा कि नाम से ही विदित है भुजंग जैसी स्थिति। भुजंग शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है-सर्प/नाग/साँप। तथा आसन का अर्थ होता है - स्थिति।इस प्रकार भुजंगासन दो शब्दों से बना है-भुजंग+आसन।अतः इसका शाब्दिक अर्थ होता है भुजंग या सर्प जैसी स्थिति । यह आसन करते समय शरीर की स्थिति सर्पिलाकार हो जाने के कारण इसे भुजंगासन कहा जाता है।
सूर्य नमस्कार में भुजंगासन सातवे स्थान पर आता है।भुजंगासन पीठ के रोगियों तथा शरीर को चुसतीला व फुर्तीला बनाये रखने में बहुत मददगार है।
भुजंगासन की विधि
- भुजंगासन करने के लिए सर्वप्रथम पेट के बल लेट जाइये तथा पैरों को एकदम सीधा व लंबवत फैलाये |
- अब हथेलियों को कन्धों के नीचे जमीन पर इस प्रकार से रखिये की सिर जमीन को छूता रहे ।तथा पीठ की मांसपेशियों को एकदम ढीला/शिथिल छोड़ दीजिए।
- अब धीरे-धीरे सिर को व कन्धों को जमीन से ऊपर उठाते जाए तथा सिर को जितना पीछे की ओर ले जा सकते हो उतना पीछे की और ले जाइये।
- हाथों की सहायता के बिना कन्धों को केवल पीठ के सहारे ऊपर उठाने का प्रयत्न करना चाहिये
- धीरे-धीरे पूरी पीठ को ऊपर की ओर तथा पीछे की ओर झुकाते हुए गोलाकार करते जाइये। इस अवस्था में हाथ एकदम सीधे होने चाहिए। यह आसन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पीठ पर तनाव या अनावश्यक खिंचाव न पड़े।
- 6.यह आसन करते समय जमीन से शरीर को ऊपर उठाते समय धीरे धीरे स्वाश अंदर लीजिये।तथा जब अपनी चरम स्थिति में पहुँच जाए(पूर्ण भुजंगासन की स्थिति) तब शवास को थोड़ी देर तक रोक के रखे ।
- पूर्व स्थिति में लौटते समय(सिर को वापस जमीन की और लाते समय) धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दीजिये। अंतिम स्थिति में 1 मिनट रुकने की कोशिश कीजिए। इस आसन को पांच से छह बार दुहराइये।
भुजंगासन की सावधानियां
जिन्हें पेट के घाव, हर्निया, आंत की बीमारी से संबंधित कोई रोग है या पीड़ित है उन्हें यह आसन किसी विशेषज्ञ या योग instructor की देख-रेख में करना चाहिए। यह आसन अपनी क्षमता अनुसार करना चाहिए।अनावश्यक ज्यादा समय करके अपनी मांसपेशियों में खिंचाव का कारण न बनने दे।
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