बाबा आमटे की जीवनी | Baba Amte Biography In Hindi
समाजसेवी बाबा आमटे इनका पूरा नाम डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट शहर में हुआ था। पिता का नाम देविदास आमटे और माता का नाम लक्ष्मीबाई आमटे था। इनके पिता शासकीय सेवा में लेखापाल थे। बाबा आमटे का परिवार एक जमीदार धनी परिवार था। इसलिए इनका बचपन बहुत ही ठाठ बाट से बिता। इनका बचपन एक राजकुमार की तरह बिता। अपनी युवावस्था में बाबा आमटे तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने के काफी शौक़ीन थे। ये अंग्रेजी फिल्म पर अपनी समीक्षाएं लिखते थे। एक बार एक अमेरकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने इनको इसके लिए पत्र लिखकर बधाई दी थी।
बाबा आमटे को बाबा इसलिए नहीं कहा जाता की यह कोई संत महात्मा थे इनके परिवार और इनके माता-पिता इनको बाबा कह कर पुकारते थे। बाबा आमटे को कभी भी निचली जाती के बच्चो के साथ खेलने से नहीं रोका गया। वे जाती भेद- भाव को नहीं मानते थे। और उनका परिवार भी सामजिक भेद-भाव को नहीं मानता था।
बाबा आमटे की प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा नागपुर के मिशन स्कूल से हुई। फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढाई की उसके बाद उन्होंने वकालत का काम शुरू कर दिया। बाबा आमटे ने जब भारत के गावों का दौरा किया तो उन्होंने देखा की गावों का हाल बहुत ही ख़राब हैं। उस समय भारत में आजादी का संघर्ष जोरो पर चल रहा था। और यह संघर्ष गाँधी जी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था। तब बाबा आमटे ने गाँधी जी के साथ अहिंसा के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया। उन्होंने गावों में जाकर किसानो से मिले और भूमि सुधार आन्दोलन की शुरुआत की।
एक दिन बाबा आमटे ने देखा की एक कुष्ट रोगी तेज बारिश में भींग रहा हैं लेकिन उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आ रहा हैं। बाबा के मन में एक बात आई की अगर इसके जगह मैं होता तो? उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने उस कोढ़ी को उठाया और अपनी घर की तरफ चल दिए। और उसी दिन से ऐसे लोगो की सेवा करने का व्रत (संकल्प) ले लिया।
बाबा आमटे ने कुष्ट रोगियों की सहायता के लिए आनन्दवन संस्था की स्थापना की और एक नेत्रहिन् विद्यालय की भी स्थापना की। और उसके बाद गरीब बच्चो को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने गोकुल संस्था का गठन किया।
बाबा आमटे ने आश्रम में कुष्ट रोगियों की सेवा में लग गय। उन्होंने आश्रम का परिवेश ऐसा बनाया की वहा पर कुष्ट रोगी सम्मान से जिन्दगी जी सके। बाबा आमटे का त्याग और भावना को चरम बिन्दु कहा जा सकता हैं। की उन्होंने कुष्ट रोग निवारण के लिए दवाई का परीक्षण करने के लिए उन्होंने अपने शारीर को कुष्ट के पनपने का माध्यम सवीकार का लिया। क्योकि उस पर नई दवाई और चिकित्सक पद्धति आजमाई जा सके।
जब पंजाब में अंतकवाद का साया मंडरा रहा था। कुछ गुमराह युवक भारत को तोड़ना चाह रहे थे। और पंजाब को खलिस्तान बनाने में लगे थे। तब बाबा आमटे ने पंजाब जाकर वहा से भारत जोड़ो आन्दोलन की शुरुआत की।
बाबा आमटे ने दो काब्यसंग्रह लिखा हैं। 1. ज्वला आणि फुले और 2. उज्ज्वल उद्यासाठी।
बाबा आमटे का 94 वर्ष की उम्र में 9 फरवरी 2008 को चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा के उनके निवाश पर निधन हो गया।
बाबा आमटे को उनके महान कार्य के लिए विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानीत किया गया हैं।
- 1971 भारत सरकार से पद्मश्री
- 1979 जमनालाल बजाज सम्मान
- 1980 नागपुर विश्वविद्यालय से डी-लिट उपाधि
- 1983 अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार
- 1985 रेमन मैगसेसे (फिलीपीन) पुरस्कार मिला
- 1985 86 पूना विश्वविद्यालय से डी-लिट उपाधि
- 1988 घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान
- 1988 संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ऑनर
- 1990 टेम्पलटन पुरस्कार
- 1991 ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान
- 1992 स्वीडन का राइट लाइवलीहुड सम्मान
- 1999 गाँधी शांति पुरस्कार
- 2004 महाराष्ट्र भूषण सम्मान
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