मौर्य वंश का इतिहास- प्राचीन भारत का सबसे महान वंश

 प्रशासन मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी | इसके अतिरिक्त साम्राज्य का प्रशासन के लिए चार और प्रांतों में बांटा गया था | पूर्वी भाग की राजधानी तोसाली थी तो दक्षिणी भाग की राजधानी सुवर्णगिरी थी इसी प्रकार उत्तरी तथा पश्चिमी भाग की राजधानी क्रमशः तक्षशिला तथा उज्जैन थी | जिसे उज्जैनी भी कहा जाता है | इसके अतिरिक्त समापा,अशीला तथा कौशांबी भी महत्वपूर्ण नगर थे | राज्य के प्रशासन को चलाने के लिए प्रांतपालो को नियुक्त किया जाता था | यह प्रांतपाल राजघराने की ही राजकुमार होते थे | जो स्थानीय प्रांतों के शासक थे | राजकुमारों की मदद के लिए हर प्रांत में एक मंत्री परिषद तथा महामात्य होते थे | प्रान्त आगे जिलों मे बटे होते थे | प्रत्येक जिला गांव के समूह में  बटा होता था |



प्रदेशिक जिला प्रशासन का प्रधान होता था | रज्जुक जमीन को मापने का काम करता था | प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी | जिसका प्रधान ग्रामीण कहलाता था | कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों के प्रशासन के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा है | विद्वानों का कहना है कि उस समय पाटलिपुत्र तथा अन्य नगरों का प्रशासन इस सिद्धांत के अनुरूप ही रहा होगा | मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र के प्रशासन का वर्णन किया है | उसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का शासन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था | जिसमें 30 सदस्य होते थे यह 30 सदस्य भाजपा सदस्यों वाली 6 समितियों में बैठे होते थे | प्रत्येक समिति का कुछ निश्चित काम होता था | पहली समिति का काम औद्योगिक तथा कलात्मक उत्पादन से संबंधित था | इसका काम वेतन निर्धारित करना तथा मिलावट रोकना भी था | दूसरी समिति पाटलिपुत्र में बाहर से आने वाले लोगों को हंसकर विदेशियों के मामले देखती थी | तीसरी समिति का संबंध जन्म तथा मृत्यु के पंजीयन ज्योति समिति व्यापार तथा वाणिज्य का विनियम करती थी | इसका काम निर्मित माल की बिक्री तथा व्यापार पर नजर रखना था | पांचवी समिति माल के निर्माण पर नजर रखती थी तो छठी का काम कर वसूल करना था | नगर परिषद के द्वारा जन कल्याण के कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के अधिकारी भी नियुक्त किये थे जैसे सड़कों,बाजार, चिकित्सालय,देवालयम,शिक्षण संस्थानों,जलापूर्ति,बंदरगाहों की मरम्मत तथा रखरखाव का काम करना | नगर का प्रमुख अधिकारी नागरिक कह लाता था | कौटिल्य ने नगर प्रशासन में कई विभागों का भी उल्लेख किया है जो नगर के कई कार्यकलापों को नियमित करते थे जैसे लेखा विभाग राजस्व विभाग खान तथा खनिज विभाग,विभाग सीमा शुल्क और कर विभाग मौर्य साम्राज्य के समय एक और बात जो भारत में अभूतपूर्व थी |



वह ही मौर्य का गुप्त चरो का जाल उस समय पूरे राज्य में गुप्त चोरों का जाल बिछाया गया था जो राज्य पर किसी भी बाहरी आक्रमण का आंतरिक विद्रोह की खबर प्रशासन तक सेना तक पहुंचाने में सक्षम था | भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासन काल में राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुई थी | मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केंद्रीय कारण था परंतु राजा निरंकुश नहीं होता था | कौटिल्य ने राज्य सप्तांग सिद्धांत निर्दिष्ट किया था | जिसके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी |


आर्थिक स्थिति :- 

इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना का एक परिणाम यह हुआ कि पूरे साम्राज्य में आर्थिक एकीकरण हुआ |  किसानों को स्थानीय रूप से कोई कर नहीं देना पड़ता था | हालांकि इसके बदले उन्हें कड़ाई से पर भारी मात्रा में कर केंद्रीय अधिकारियों को देना पड़ता था | उस समय की मुद्रा और अर्थशास्त्र में अनपढ़ों के वेतन मानव का भी उल्लेख मिलता है |        



 धार्मिक स्थिति :-

छठी सदी ईसा पूर्व यानी मोरियो के उदय से कोई 200 वर्ष पूर्व तक भारत में धार्मिक संप्रदायों का प्रचलन था | यह सभी धर्म किसी न किसी रूप से वैदिक प्रथा से जुड़े थे | छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कोई 62 संप्रदायों के अस्तित्व का पता चला | जिसमें बौद्ध तथा जैन संप्रदाय का उदय कालांतर में अन्य की अपेक्षा अधिक हुआ मौर्यों के आते-आते बहुत तथा जैन संप्रदायों का विकास हो चुका था | उधर दक्षिण में शेव तथा वैष्णव संप्रदाय भी विकसित हो रहे थे | चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया था | ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु जैन मुनि भद्रबाहु के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में सन्यासी के रूप में रहने लगे थे | इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा ही पाया जाता है कि चंद्रगुप्त ने उसी स्थान पर एक सच्चे निष्ठावान चयन की तरह आमरण उपवास करके दम तोड़ा था | वह पास में ही चंद्र गिरी नाम की पहाड़ी है जिसका नामकरण चंद्रगुप्त के नाम पर ही किया गया था | अशोक ने भी कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपना लिया था | इसके बाद उसने धर्म के प्रचार में अपना सारा ध्यान लगा दिया यह धर्म का मतलब कोई धर्म या मजहब के रिलेशन ना होकर नैतिक सिद्धांत था | उस समय ना तो इस्लाम का जन्म हुआ था और ना ही ईसाई धर्म का अतः वह नैतिक सिद्धांत पर उस समय बाहर के किसी धर्म का विरोध करना ना होकर मनुष्य को एक नैतिक नियम प्रदान करना था | 


बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अशोक ने इसको जीवन में उतारने की भी कोशिश की उसने स्वीकार किया और पशुओं की हत्या छोड़ दिया और मनुष्य तथा जानवरों के लिए चिकित्सालयों की स्थापना भी कराई उसने ब्राह्मणों तथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के संन्यासियों को उदारता पूर्वक दान भी दिया | इसके अलावा उसने आराम ग्रह एवं धर्मशाला बनवाए तथा बावरियों का भी निर्माण करवाया | उसने धर्म महापात्र नाम के पद वाले अधिकारियों की नियुक्ति की | उसका धर्म अब जनता का आम जनता में धर्म का प्रचार करना था | उसने विदेशों में भी अपने प्रचारक दल भेजे पड़ोसी देशों के अलावा मिस्र,सीरिया,मकदूनिया, यूनान तथा एपेरस में भी उसमें धर्म प्रचारकों को भेजा | हालांकि अशोक ने खुद बहुत धर्म अपना लिया था | पर उसने अन्य संप्रदायों के प्रति भी आदर का भाव रखा तथा उनके विरुद्ध किसी कार्यवाही का उल्लेख नहीं मिलता | 


सैन्य व्यवस्था :-


व्यवस्था 6 समितियों में बटे हुए विभाग द्वारा निर्देशित की जाती थी | प्रत्येक समिति में 5 सैन्य विशेषज्ञ होते थे |   पैदल सेना,शिवसेना,गजसेना,रथसेना तथा नौसेना की व्यवस्था थी | सैनिक प्रबंधन का सर्वोच्च अधिकारी अंतपाल कहलाता था | यह सीमांत क्षेत्रों का भी व्यवस्थापक होता था | मेगास्थनीज के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में छह लाख पैदल सैनिक 50,000 अश्व,रोही 9000 हाथी तथा 800 औरतों से सुसज्जित अजय सैनिक थे | 


मौर्य साम्राज्य का पतन के कारण

अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहद्रत की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी | इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया | दोस्तों जानते हैं कि मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे |   

  1.  अयोग्य एवं निर्मल उत्तराधिकारी     
  2. प्रशासन का अत्यधिक केंद्रीय करण    
  3. राष्ट्रीय चेतना का भाग नंबर   
  4. आर्थिक एवं सांस्कृतिक समानताएं   
  5.  प्रांतीय शासकों के अत्याचार   
  6. करो की अधिकता    
  7. अशोक की धम्म नीति   
  8. अमात्यो के अत्याचार



मौर्य कालीन सभ्यता के अवशेष भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह


पाए गए हैं पटना यानी कि पाटलिपुत्र के पास कुमुरार में अशोक कालीन भग्नावशेष पाए गए हैं | अशोक के स्तंभ तथा शिलाओं पर उत्कीर्ण उपदेश साम्राज्य की अलग-अलग जगह मिले है जिससे हमें मौर्य वंश के इतिहास के बारे में एक विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है

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